देशी गाय के दुध से बना दही और दही को बिलोकर तैयार किया गया छाछ (तक्र)

अन्य भाषा मे नाम

1 – संस्कृत – तक्र

2 – हिन्दी – छाछ

3 – फारसी – मठा

4- अंग्रेजी – Butter Milk

गुण :- लधु (पचने मे हलका)

रुक्ष (शरीर मे रुखापन लानेवाला)

दीपन (भुख बढ़ानेवाला)

रस (स्वाद) – मधुर (मीठा)

विपाक – मधुर (मीठा)

वीर्य – उष्ण (गर्म )

दोषों पर परिणाम – वातपित्तशामक हैं।

तक्र का गुण:-

आयुर्वेद मे छाँछ को पृथ्वी का अमृत कहा हैं। देशी गाय के दुध का जमाया हुआ दही मथकर जो छाँछ बनाया जाता हैं उसे ‘ तक्र ‘ कहते है। यह खट्टा होने से शीघ्र ही वातरोग नष्ट करता हैं, मीठा होने से पित्तविकार नष्ट करता है और कसैला होने से कफ नष्ट करता हैं, अर्थात तीनो दोषों का शमन करनेवाला होता हैं। छाँछ भोजन मे रुचि तथा भुख दोनों बढाता हैं। खाने की इच्छा न होतो छाँछ के साथ भोजन करने से खाने की इच्छा होती हैं।

छाँछ मेधा (वुद्धि) बढ़ाता हैं। बवासीर मे भी उपयुक्त हैं। ग्रहणी नामक व्याधि (पतले, दुर्गधियुक्त दस्त ) मे छाँछ का सेवन अत्यंत उपयुक्त हैं।

खुन की कमी, मोटापा, पेट की बीमारियाँ, प्यास तथा पेट मे किड़े होना (कृमी) मे छाँछ उपयुक्त हैं।

छाँछ उपयोग में बरतने जानेवाली सावधानियां:-

छाँछ रखने के लिए कभी भी धातु के बर्तन का उपयोग ना करें, छाँछ खट्टा होने से धातु के साथ रासायनिक प्रक्रिया होने की संभावना होती हैं। छाँछ के लिए हमेशा चिनी मिट्टी, मिट्टी या काँच के बर्तन का उपयोग करे।

छाँछ (तक्र) के पाँच भेद हैं।

जल की मात्रा के अनुसार तक्र के पाँच भेद बतलाये हैं।

1 * घोल – बिना जल मिलाये यदि मलाई के साथ दही को मथा जाए तो उसे घोल कहते हैं।

गुण – घोल मे यदि शक्कर मिला हुआ हो तो वह गुणों मे रसाल ( सिखरन ) के समान होता हैं। यह वात पित्तनाशक और आल हदजनक होता है।

2 * मथित:– बिना जल मिलाये यदि मलाई अलग कर दही को मथा जाए तो उसे मथित कहते हैं। इसे लोकभाषा मे ‘महुया ‘ या ‘ मथुवा ‘ कहते है। यह कफ और पित्तनाशक हैं।

3 * तक्र:– जिस दही को चार गुना जल मिलाकर मथा जाय उसे तक्र कहते है। यह मल को बाँधने वाला हैं, अतः पतले दस्त मे ग्रहणी व्याधी मे उपयुक्त हैं। पचने मे हलका, गरम (उष्ण) हैं, भुख बढाता हैं, पुरुषो मे वीर्य बढता हैं, तृप्ति देता हैं तथा वात को नष्ट करता हैं।

भावप्रकाश मे तो यहाँ तक कहा हैं कि नित्य तक्र का सेवन करनेवाला व्यक्ति कभी भी बीमार नहीं पड़ता हैं और तक्र के प्रभाल से नष्ट हुये रोग पुनः कभी उत्तपन्न नही हो सकते। अतः इसे पृथ्वीतल का अमृत कहा गया हैं।

4 * उदश्वित्:– जिस दही मे आधा जल मिलाकर मथा जाए उसे उदश्वित् कहते है । यह कफ को बढानेवाला हैं, बलदायक हैं । अपचित (आम) को नष्ट करने वाला है ।

5 * छच्छिका:– जिस दही मे से प्रथम मथ कर मक्खन निकाल लिया हो, पुनः उसी मे अधिक मात्रा मे स्वच्छ जल डालकर फिर मथा जाय तो उसे छच्छिका कहते है। (छाँछ) यह ठंडा (शीतल) ,पचने मे हल का, वात-पितनाशक थकान और प्यास दुर करनेवाला होता हैं । सैंधव नमक मिलाकर लेने से भूख बढाता हैं ।

व्याधियों से तक्र सेवन :-

1 * वात दोष बढने पर

खट्टा छाँछ +सेंधा नमक मिलाया हुआ तक्र हितकारी

2 * पित्तदोष बढने पर:-

मीठा छाँछ + खाण्डसारी मिश्रित तक्र हितकारी

3 * कफ दोष बढने पर:-

सोठ, मरिच, तथा पीपर मिश्रित तक्र हितकारी

व्याधिविशेष से तक्र सेवन :-

1 * हिंग, जीरा (दोनो भूनें हुये) , सैंधव नमक +तक्र वातशामक , बवासीर , पतले दस्त मे अत्यंत हितकारी रुचि बढानेवाला , शरीर की पुष्टि करनेवाला, बल देनेवाला, और मूत्राशय (वस्ति) की वेदना दुर करनेवाला हैं।

2 * गुर +तक्र :-

मूत्र कष्टता से होना (मूत्रकृच्छ), मूत्र करते वक्त वेदना होना ।

3 * चित्रक+घोल :-

रक्ताल्पता ( खून की कमी / पांडु रोग )

पक्वापक्व तक्र के गुण :-

1 * कच्चा तक्र (विना पकाया हुआ) :-

पेट (कोष्ठ) स्थित कफ को नष्ट करता हैं।

गले मे (कण्ठ) कफ निर्माण करता हैं।

2 * पकाया हुआ तक्र:-

पुराना सर्दी जुकाम (पीनस) ,साँस लेने मे तकलिफ (श्वास) ,खाँसी (कास) मे उपयुक्त।

तक्र सेवन :-

ठंडी के दिनों मे भूख ना लगना, समय पर भूख न लगना, कफ की व्याधियाँ, विष, बवासीर, पेट मे वायु का गोला, पतले दस्त, ( ग्रहणी, sprue ) इन स्थितियों मे तक्र का सेवन अमृत के समान हैं ।रक्यल्पत ( पांडु रोग ) मोटापा ( मेदरोग Obesity ) , मूत्र का बंद होना ( मूत्रदाह ), कीड़े होना ( कृमि ), सफेद दाग , चमड़ी की बीमारियँ, सूजन मे उपयुक्त।

अब अंत मे एक विशेष अनुभव :-

आंव व आमातिसार मे छाँछ मे सोठ का चूर्ण (आधा चम्मच), उदरकृमि मे छाँछ मे पीसी हुई कालीमिर्च (एक ग्राम) मिलाकर लेना लाभदायक है। कब्ज मे छाँछ मे काला नमक और अजवाइन का चूर्ण डालकर और पतले दस्तो और अतिसार मे भुना हुआ सफेद जीरा छाँछ मे डालकर लेना लाभकारी है।

बवासीर मे छाँछ मे पिसी हुई अजवाइन और सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता हैं और नष्ट हुए बवासीर के मस्से पुनः उत्पन्न नहीं होता।

खूनी बवासीर मे ताजी छाँछ मे थोड़ा सेंधा नमक और भुना हुआ जीरा मिलाकर लेने से लाभ पहुंचता हैं।

छाँछ त्रिदोषनाशक हैं, क्योंकि पेट मे जाने के बाद यहमीठा हो जाती हैं। अतः पित्त को कुपित नही करती। यह गर्म और कसौली होने के कारण कफनाशक होती हैं स्वाद मे खट्टा मीठा होने के कारण वायुनाशक होती हैं।

अंत भला तो सब भला :-

छाँछ यूरिक एसिड को नष्ट करती हैं, तथा पाचनतंत्र को बल प्रर्दान करती हैं।


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